गाय हमारी माता है और हमको दूध देती है। यह वह शिक्षा हैं जो बचपन से हमारे बच्चों को दी जाती है। इसलिए जब बड़े होने पर यह कहा जाता है कि गाय हमारी नहीं बछड़े की माँ है और हमारे लिए नहीं अपने बछड़े के लिए दूध देती है तो बिना सोचे समझे ही इस इस बात को नकार दिया जाता है।
अगर ईमानदारी से सोचा जाये तो यह कुशिक्षा और गलत ज्ञान ही आज गायों के शोषण का मूल कारण है। लेकिन जब गायों पर अत्याचार की बात आती है जो कि प्रत्यक्ष्य नज़र भी आता है तो सारा दोष डेयरी उद्योग पर मढ़ दिया जाता है और एक तर्क दिया जाता है की डेयरी उद्योग बंद होना चाहिए लेकिन घर पर गाय पालन को बढ़ावा देना चाहिए।
घर पर गाय पालन और डेयरी उद्योग, क्या दोनों अलग-अलग हैं?
जब दूध के लिए गायों पर होने वाले अत्याचारों की बात उठती है तो इस पर गंभीरता से विचार करने के बजाय इस बात का समाधान ढूंढा जाता है कि कैसे इन आरोपों से बचते हुए दूध का धंधा और उपभोग जारी रखा जाये।
आरोपों से मुँह छिपाने के लिए हमारी गाय पालन की परंपरा की दुहाई भी दी जाती है। यहाँ तक कि दूध के घोर हिमायती यह भी आह्वान करते हैं कि हर घर में गाय पाली जानी चाहिए ताकि गौमाता पर अत्याचार न हो और सबको शुद्ध दूध मिलता रहे। लेकिन चाहे डेयरी हो या घर, गाय का शोषण होना तो निश्चित ही है।
दूध का व्यवसाय
डेयरी एक शुद्ध व्यावसायिक उपक्रम होता है जहाँ दूध बेच कर मुनाफा कमाना ही एकमात्र उद्देश्य होता है। दूसरी और घर पर गाय पालन स्वयं के प्रयोग के लिए दूध उत्पादन के साथ-साथ आंशिक व्यावसाय भी होता है। जब व्यावसायिक हित ही सर्वोपरि होते हैं तो यहाँ करुणा की बात बेमानी हो जाती है।
अगर कोई भी गाय पालन करने वाला या डेयरी वाला गायों के सभी हितों का धयान रखे तो वह बेचने के लिए तो दूर स्वयं अपने प्रयोग हेतु भी पर्याप्त दूध उत्पादन नहीं कर सकेगा क्योकि यह उसके व्यवसाय के लिए नुकसान दायक साबित होगा।
गाय कितनी माता है और कितनी दूध की मशीन यह निचे लिंक में पढ़ने से स्पष्ट होता है
गाय पालना आसान नहीं, हो सकता है 20 से 25 हजार का नुकसान
दूध उत्पादन का तरीका
गर्भाधान
डेयरी हो या घर पर पाले जाने वाली गाय, दूध तभी मिलता है जब गाय के बछड़ा पैदा होता है। दोनों ही परिस्थितियों में गायों को बाँध कर रखा जाता है और कृत्रिम गर्भाधान (या कहें की बलात्कार) करवाया जाता है।
गाय और बछड़े की व्यथा
दोनों ही जगह बछड़े और गाय की व्यथा और कष्ट एक जैसे होते हैं। हो सकता है डेयरी में कुछ ज्यादा हो और घर पर कुछ कम लेकिन पैदा होते ही गाय को बछड़े से अलग रखना और बछड़े को उसके हिस्से का दूध न पीने देना गाय और बछड़े दोनों के लिए सबसे बड़ा मानसिक आघात होता है।
दोनों को अलग रखने के पीछे एक कुतर्क दिया जाता है कि बछड़ा अपनी माँ का सारा दूध पी लेगा तो मर सकता है। इसी कुतर्क की आड़ में घर और डेयरी दोनों जगह गाय का दूध धोखे से निकाल लिया जाता है।

क्या गाय का बछड़ा उसकी माँ का सारा दूध पी सकता है?
नर बछड़ों का दर्द
नर बछड़ा दोनों ही जगह एक सबसे बड़ा सरदर्द माना जाता है। विशेषकर भारत में किसी नर बछड़े की स्थिति गले में फंसे निवाले की तरह होती है जो न निगला जाता है न उगला जाता है। किसी नर बछड़े को उसकी माँ का दूध पिलाना तो दूर ऊपर का खाना खिला कर बड़ा करना भी व्यावसायिक हितों के सख्त खिलाफ माना जाता है क्योकि नर बछड़ा बदले में कोई फायदा देने की स्थिति में नहीं होता है।
भारत में गाय को माता का दर्जा होने के कारण गौहत्या पर पाबंदी है इसलिए यह घृणित कार्य चोरी छिपे होता है।
डेयरी में अक्सर नर बछड़े भूख से मर जाते हैं या मार दिए जाते हैं या फिर उनको सड़कों पर छोड़ दिया जाता है। घर पर गाय पालन करने वाले भी चाहे दुनिया के सामने कितनी ही गौमाता की पूजा करे लेकिन नर बछड़े का भार नहीं उठा सकते और पैदा होने के कुछ ही दिनों में सड़कों पर आवारा भटकने के लिए छोड़ देते हैं। अगर किसी गाय पालने वाले गौ-भक्त से यह सवाल किया जाए कि वह इतने सालों से गाय पालन कर रहा है तो उसके पास नर बछड़े कितने हैं तो उसके पास कोई जवाब नहीं होता सिर्फ बाहनों के। यही बात डेयरी वाले से पूछी जाए तो उनका तर्क तो और भी बेतुका होता है कि नर बछड़े प्राकृतिक रूप से जल्दी मर जाते हैं।
भारत के सबसे बड़े दूध व्यवसाय का सच
अगर कोई यह तर्क देता है कि घर पर गाय पालन गायों की नि:स्वार्थ सेवा करने जैसा है और यही दूध पाने का सबसे अच्छा अत्याचार रहित तरीका है तो अमूल दूध की कहानी सबको जाननी चाहिए।
आज भारत का सबसे बड़ा दूध और दूध उत्पादों का निर्माता और विपणन कर्ता अमूल अपना सारा दूध घर पर गाय पालन करने वालों से ही एकत्र करता है। देश के विभिन्न भागों में गांव-गांव में घर पर गाय पालने वाले अपनी गौमाताओं का दूध बेच कर मुनाफा कमाते हैं। इसलिए यहाँ पर भी यही बात लागू होती है कि जब बात मुनाफे की आती है तो दूसरे सारे पहलू दिखावा भर होते हैं।
अगर यह बात मानी जाए कि सिर्फ डेयरी वाले ही गायों पर अत्याचार करते हैं और घर पर गाय पालन गायों के प्रति दया और उनके कल्याण का पर्याय है तो आज भारत के शहरों, कस्बों और गावों की सड़कें आवारा गायों से भरी नहीं होती और भारत विश्व में गौमांस का अव्वल निर्यातक भी नहीं होता क्योकि भारत में विदेशों की तरह डेयरी का व्यवसाय संगठित क्षेत्र से कहीं ज्यादा असंगठित क्षेत्र से संचालित होता है।