26 नवंबर को, भारत में श्वेत क्रांति के जनक माने जाने वाले वर्गीज कुरियन के जन्म दिन पर भारत में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस घोषित किया गया है। हम भी वर्गीज कुरियन को याद कर रहें है लेकिन इसलिए नहीं कि उन्होंने देश में दूध की नदियाँ बहा दी वरन इसलिए कि –
वर्गीज कुरियन ने गोहत्या पर प्रतिबंध का समर्थन करने से इनकार कर दिया था क्योंकि उन्हें डेयरी अर्थशास्त्र की आवश्यकताओं का पता था।
सन्दर्भ के लिए आप यहाँ देख सकते हैं Verghese Kurien’s dairy economics fodder for cow politics
क्या गौहत्या और डेयरी में सम्बन्ध है?
वर्गीज कुरियन यह अच्छी तरह जानते थे कि गायों के कत्ल पर प्रतिबन्ध लगाना डेयरी उद्योग के हित में नहीं है। लेकिन भारत में गाय को गौमाता कहा जाना और गाय पर होने वाली राजनीति के कारण अपनी बात को खुल कर नहीं समझा सके कि गौहत्या पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए ।
चाहे उनके डेयरी अर्थशास्त्र को दबा दिया गया हो लेकिन वास्तविकता को आखिर कब दबाया या झुठलाया जा सकता है। श्वेत क्रांति के जनक को यह अच्छी तरह से पता था कि श्वेत क्रांति अकेली नहीं आएगी पीछे-पीछे गुलाबी क्रांति भी आएगी ही। आज भले ही भारत के कई राज्यों में गौहत्या पर प्रतिबंध है लेकिन फिर भी या तो चोरी छिपे गौहत्या होती है अथवा बेकार हुई गायों की तस्करी उन राज्यों में की जाती है जहाँ इस पर कानूनी प्रतिबन्ध नहीं है। यहाँ तक की बेकार हुई बूढी गायों और बैलों की तस्करी बांग्लादेश में भी की जाती है।
दूध उत्पादन में आज भैंसो का हिस्सा लगभग आधे से ज्यादा है और भैंसों की हत्या पर कोई कानूनी प्रतिबन्ध नहीं है इसलिए अधिकांश पशुपालक भैंसे रखना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि भैंसो के नर बच्चों की हत्या और बूढी, बेकार हुई भैंसो को कत्लखाने को बेच कर भी मुनाफा कमाया जा सकता है।
डेयरी की लगभग सभी भैंसो की हत्या कत्लखाने में की जाती है इसका सबूत यह है कि कोई भी बूढी भैंस और नर बच्चा सड़कों पर आवारा घूमते नहीं दिखाई देते और न ही डेयरी वाले इन्हें आजीवन रखते हैं, तो फिर हर साल लाखों भैंसे और पाडे जाते कहाँ है? शायद यह समझने के लिए बहुत ज्यादा बुद्धिमान होने की आवश्यकता नहीं है।
डेयरी और बूचड़खाने में क्या रिश्ता है?
भारत की श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन ने 1960 के दशक की शुरुआत में गौ-वध निषेध का जमकर विरोध किया था, उन्होंने कहा था “यदि भारत सस्ता और भरपूर दूध चाहता है, तो जैसे ही पशु डेयरी के लिए अनुपयोगी होते हैं तो उन्हें बड़े पैमाने पर मारना पड़ेगा“। ‘बेकार’, ‘अनुत्पादक’ और ‘अनैतिक’ मवेशी शब्द, वध को जायज ठहराने के लिए डेयरी में प्रयोग किये जाते हैं।
क्या है डेयरी का अर्थशास्त्र?
इसे समझना कोई राकेट साइंस नहीं है लेकिन फिर भी लोग या तो समझना नहीं चाहते अथवा समझ कर भी अनजान बने रहना चाहते हैं। अर्थशास्त्र के अनुसार मुनाफा
बहुत ही साधारण सी बात है कि डेयरी एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान होता है और उसका मुख्य उद्देश्य सिर्फ ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने का होता है लेकिन डेयरी उपभोक्ता यहाँ बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में है अथवा यह कहना ज्यादा उचित होगा कि डेयरी लॉबी और सरकार की मिलीभगत ने लोगों के दिमाग में इस तरह की गलत जानकारियां भर दी है कि वह न तो सच्चाई देखने और न ही सुनंने को तैयार होता है।
दूसरी तरफ गायों को पूजनीय और गौ-मात घोषित कर दिया गया ताकि उनके दूध के सेवन पर किसी तरह की ग्लानि अनुभव न हो और दूध पीने वाला भर-भर कर दूध का उपभोग करे और सरकार और डेयरी उद्योग अपने झूठ के बल पर भरपूर मुनाफा कमाए।
डेयरी उद्योग को निरंतर मुनाफे में बनाये रखने के लिए यह अति-आवश्यक होता है कि किसी भी डेयरी में ऐसे पशु न हों जो दूध देने लायक नहीं होते जैसे नर बछड़े या बूढी गायें। इन अवांछित पशुओं से छुटकारा पाना आवश्यक है वरना इन पर होने वाला खर्च दूध की लागत को बढ़ा कर मुनाफे को कम कर सकता है और कोई भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान यह नहीं चाहेगा।
अब समस्या यह आती है कि इन नर बछड़ों और बेकार हुई गायों से छुटकारा कैसे पाया जाए? यही वह समस्या थी जिसके कारण वर्गीज कुरियन के डेयरी अर्थशास्त्र ने हिंदुत्ववादी संगठनों के गौहत्या पर प्रतिबन्ध की मांग का विरोध किया था। वह जानते थे की इसका सबसे अच्छा उपाय बेकार गायों और बछड़ों की हत्या कर मांस उत्पादन किया जाए जिससे डेयरी वालों को अपने बेकार पशुओं से छुटकारा भी मिल जायेगा और उन्हें अतिरिक्त मुनाफा भी होगा।
भैंसे सड़कों पर आवारा क्यों नहीं घूमती?
क्यों और कैसे करें दुग्ध दिवस का बहिष्कार?
जब हर तरफ दुग्ध दिवस को महिमा मंडित किया जा रहा है और ज्यादा से ज्यादा दूध और दूध उत्पादों के सेवन का सन्देश दिया जा रहा है तो आप क्या करें?
क्यों करें दुग्ध दिवस का बहिष्कार?
इस एक ही मुख्य कारण है कि किसी भी पशु का दूध इंसानो द्वारा सेवन किये जाना न केवल स्वास्थय के लिए हानिकारक है अपितु अनैतिक भी है। जो दूध गाय अपने बछड़े के लिए बनती है वह हम चुरा कर ले लेते हैं और बछड़ा भूखा ही रह जाता है और उसे इस छोटी सी उम्र में अन्य ठोस आहार पर जिन्दा रखा जाता है अथवा नर बछड़ा होने पर भूखे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। लेकिन एक तर्क यह भी दिया जाता है कि बछड़ा अपनी माँ का पूरा दूध नहीं पी सकता, इस बात में कितनी सच्चाई है यह जानने के लिए यहाँ पढ़े – क्या गाय का बछड़ा उसकी माँ का सारा दूध पी सकता है?
कैसे करें दुग्ध दिवस का बहिष्कार?
सोशल मीडिया डेयरी की काली सच्चाईयों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें, अपने दोस्तों रिशतेदारों से इस विषय पर चर्चा करें कि कैसे डेयरी एक क्रूर उद्योग है। वास्तव में आपको यह सब दुग्ध दिवस पर ही क्यों जब भी मौका मिले यह सन्देश फैलाते रहना है “दूध छोड़, दया जोड़!