ब्लड मील (Blood meal) क्या होता है?

मुझे याद है कुछ समय पूर्व अमेरिका इस बात पर भारत से नाराज़ था कि भारत में इतना बड़ा दूध का बाज़ार होते हुए भी भारत अमेरिका में उत्पादित दूध और उससे बने उत्पादों को देश में बेचने की इजाजत नहीं देता।

भारत में में न सिर्फ अमेरिका बल्कि चीन से भी किसी भी तरह के दूध से बने उत्पाद आयत करने पर पाबंदी है।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक बड़ा फ़ैसला करते हुए भारत को व्यापार में तरजीह वाले देशों की सूची से निकाल दिया है, जानकार मानते हैं कि इसकी वजह भारत का अमरीकी डेयरी उत्पाद ख़रीदने से मना करना है।

इसके जवाब में भारत का कहना था कि अमेरिका के डेयरी उद्योग में ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन करने के लिए पशुओं को खाने में ब्लड मील (blood meal) दिया जाता है।

इस तरह से जो दूध पैदा होता है उसका उपयोग भारत में लोगों की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ होगा इसलिए इसकी अनुमति देना संभव नहीं है।

ब्लड मील के उपयोग के विरोध करने के पीछे भारत सरकार के पास केवल सांस्कतिक या धार्मिक आस्था के कारण ही नहीं हैं, बल्कि वैज्ञानिक तर्क भी हैं।

1980 के दशक में मैडकाऊ नाम की एक बीमारी ने अमरीका और ब्रिटेन में काफी कहर ढाया था। सेंटर ऑफ़ डिज़िज़ कंट्रोल एंड प्रीवेन्शन के अनुसार ये दुधारु पशुओं को होने वाली एक बीमारी है जो प्रियॉन नाम के प्रोटीन के कारण होती है और इसका असर पशुओं से तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) पर होता है।

इंसान भी इसके चपेट में आ सकते हैं और ऐसे मामलों में संक्रमण उनके तंत्रिका तंत्र पर ही हमला करता है।

बताया जाता है कि इसका एक कारण पशुपालन में जानवरों की हड्डियों से बने चारे का इस्तेमाल था।

हमारे देश में गाय को पवित्र और पूर्ण शाकाहारी पशु माना जाता है और इसमें कुछ गलत भी नहीं है कि गाय प्राकृतिक रूप से एक शुद्ध शाकाहारी प्राणी है।

अमेरिका और अन्य देशों में गाय के लिए इस तरह की कोई भावना नहीं होती वह तो सिर्फ एक दूध पैदा करने की मशीन होती है। जिससे किसी भी तरह से अधिक से अधिक दूध उत्पादन कर मोटा मुनाफा कमाया जाए। ब्लड मील के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए यह रिसर्च पेपर पढ़ सकते हैं – “Feather:Blood Meal a Beneficial Feed Ingredient for Dairy Cows”

ब्लड मील (Blood meal) वास्तव में क्या होता है?

ब्लड मील रक्त से बना एक शुष्क, अक्रिय पाउडर है, यह नाइट्रोजन के उच्चतम गैर-सिंथेटिक स्रोतों में से एक है। यह आमतौर पर मवेशियों या सूअर से कत्लखाने-उत्पाद के रूप में आता है।

‘ब्लड मील’ बनाने से बूचड़खानों का कचरा कम होता है और प्रदूषण घटता है लेकिन जानकर मानते हैं कि खून सुखाने की प्रक्रिया में काफी बिजली की खपत हो सकती है।

क्या काम आता है Blood meal?

जैसा की यह नाइट्रोजन के उच्चतम गैर-सिंथेटिक स्रोतों में से एक है इसलिए इसका उपयोग उच्च प्रोटीन वाले पशु आहार के रूप में किया जाता है।

विदेशों में ब्लड मील का उपयोग पशु आहार के रूप में बहुत ज्यादा किया जाता है और इसे किसी भी शाकाहारी आहार की तुलना में अच्छा माना जाता है। यहाँ सवाल यह है कि क्या ब्लड मील की हमारी संस्कृति में कोई जगह हो सकती है? क्या ब्लड मील खाने वाली गायों के दूध को हम कभी स्वीकार कर सकते हैं?

अमेरिका जैसे देशों में इसे डेयरी उद्योग में बहुतायत से प्रयोग किया जाता है और गायों के चारे में ब्लड मील मिला कर दिया जाता है। वहां ऐसा माना जाता है कि ब्लड मील पशुओं को मोटा बनता है और उनसे दूध का उत्पादन भी बढ़ जाता है।

क्या हमारे देश में Blood meal मिलता है?

ब्लड मील न केवल हमारे देश में उपलब्ध है वरन इसका उत्पादन भी किया जाता है। जैसा की हमारे देश में कत्लखाने में भैंस और बकरे का कत्ल किया जाता है इसलिए इनके खून से ब्लड मील बना कर विदेशों में बेचा जाता है। हमारे देश में यह ऑनलाइन भी उपलब्ध है।

हमारे देश में फ़िलहाल इसको, मुर्गी और मछली पालन उद्योग पालतू कुत्ते और बिल्ली के खाने के इस्तेमाल के रूप में बेचा जाता है।

वैसे तो हमारे देश में दूध उत्पादन के लिए इसके उपयोग की जानकारी कहीं नहीं मिलती है। लेकिन अगर यह इतनी आसानी से उपलब्ध है तो इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कब और कहाँ इसका उपयोग किया जा सकता है।

हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था को देखते हुए ब्लड मील जैसे हिंसक और क्रूर उत्पाद का हमारे समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता। हमारे देश में विश्व में सर्वाधिक शाकाहारी लोग है जो दूध का भी उपयोग करते हैं।

सार्वजानिक रूप से इसका डेयरी उद्योग में इस्तेमाल होगा इसकी सम्भावना कम ही है। लेकिन ज्यादा उत्पादन के लालच में चोरी छिपे इसके उपयोग की संभावनाओं से बिलकुल भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

क्या डेयरी, क्रूरता से मुक्त हो सकती है?

Leave a Comment

error

Enjoy this blog? Please spread the word :)