हाल ही में जब एक अंग्रेजी समाचार पत्र में यह समाचार पढ़ा कि अब कुछ हिन्दू संगठनों को भी कुछ शर्तों के साथ गौ हत्या से कोई ऐतराज़ नहीं है। तब लगा कि इंसान जानवरों से जुड़े सारे कानून और मान्यताएं सिर्फ अपनी सुविधा के लिए ही बनाता है।
क्यों गौ हत्या के पक्ष में है कुछ हिन्दू संगठन?
वामपंथियों के बाद, अब पंजाब के दक्षिणपंथी संगठनों ने भी आवारा मवेशियों को बूचड़खानों में भेजने का समर्थन करना शुरू कर दिया है, ताकि बढ़ते आवारा मवेशियों की संख्या पर लगाम लगाई जा सके, खासकर शहरी इलाकों में, जिससे कई समस्याएं पैदा हो रही हैं, और लोगों की जान भी जा रही है।
पंजाब के मानसा कस्बें में आवारा मवेशियों के उत्पात से अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है।
शिवसेना के मानसा अध्यक्ष राज नारायण कूका ने कहा कि विदेशी नस्ल की गायों का “किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है” और इसलिए, सरकार को “उन्हें बूचड़खानों में भेजने की अनुमति देनी चाहिए”।
कूका ने समस्या का मुकाबला करने में सरकार की “अक्षमता” का विरोध करने के लिए मानसा में बंद का आह्वान भी किया था।
किसी भी हिंदूवादी संगठन के ईकाई अध्यक्ष का यह बयान वास्तव में चौंकाता तो है ही साथ ही साथ इस बात की भी पुष्टि करता है कि दूध उत्पादन के कारण पैदा हुई अवांछित मवेशियों की समस्या अब भयावह रूप लेती जा रही है।
डेयरी उद्योग द्वारा सड़कों पर छोड़े गए इन मवेशियों के कारण आये दिन दुर्घटनायें होती रहती है जिसमें कई बार लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते है और कई बार किसी की मौत भी हो जाती है।
पंजाब में ही पिछले एक वर्ष में इस तरह की दुर्घटनाओं में लगभग 300 लोगों की जान चली गयी थी।
मानसा कसबे में, इस खतरे के कारण कई बीजेपी और आरएसएस से जुड़े संगठन इस मुद्दे पर अपना रुख बदलने के लिए मजबूर हुए हैं और उनके नेता, शायद समर्थकों के दबाव में, मवेशियों को कत्लखाने भेजने पर कोई आपत्ति नहीं कर रहे हैं।
मानसा स्थित समीर छाबड़ा, जो आरएसएस से जुड़े गौ रक्षा दल के राज्य सचिव हैं, ने कहा कि प्रशासन को पहले देसी और विदेशी नस्लों को अलग करना चाहिए। “देसी गायों को संरक्षित किया जाना चाहिए और सरकार द्वारा संचालित गौ शालाओं में रखा जाना चाहिए, जबकि विदेशी नस्लों को बूचड़खानों में भेजा जा सकता है।
इसी तरह की चिंताओं को पहले भाजपा नेता ललित गर्ग ने उठाया था, जिन्होंने आरएसएस के नेतृत्व वाले विशाल मंगल गौ ग्राम यात्रा के बरनाला जिला संयोजक के रूप में काम किया है।
उन्होंने कहा कि “जिस तरह से शहरों में आवारा मवेशी लोगों को मार रहे हैं, सरकार को विदेशी नस्लों के वध पर प्रतिबंध लगाने की अपनी नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। जगह की कमी के कारण, सरकार सभी गायों को गौशाला में नहीं रख सकती है”।
गर्ग ने कहा कि उन्होंने जिला प्रशासन को आश्वासन दिया था कि अगर विदेशी नस्ल के मवेशियों को बूचड़खानों में भेजा जाता है तो वे विरोध नहीं करेंगे। कई कस्बों में, हिंदू संगठनों के सदस्य सड़कों पर आवारा गायों की बढ़ती संख्या के विरोध में विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल कर रहे हैं।
क्या यह एक व्यवहारिक समाधान है?
ऊपर नेताओं ने जो बयान दिए हैं कि “विदेशी नस्लों की गायों की हत्या से उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं है” यह उनकी परेशानी को साफ़ दिखता है कि वह जनता के कितने दबाव में है क्योंकि जनता भी अब आवारा गायों से तंग आ चुकी है।
अगर कुछ पलों के लिए उनकी बात मान भी ली जाये तो यह कैसे निर्धारित होगा कि जो गाय कत्लखाने भेजी जा रही है वह पूर्णत: विदेशी नस्ल की है या देशी और विदेशी का मिश्रण है या पूर्ण स्वदेशी है?
क्या इसके लिए कोई DNA टेस्ट का सहारा लिया जाएगा?
क्या विदेशी नस्ल की आड़ में देशी और मिश्रित नस्ल की गायों की भी हत्या की जायेगी?
अगर दूध न देने लायक गायों की हत्या को स्वीकृति मिल जाती है तो फिर गौ माता वाले सिद्धांत का क्या होगा?
क्या इससे हमारा दोगला पन जाहिर नहीं होता है कि हम अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और किसी भी धारणाओं को बदल सकते हैं?
क्या यह एक आम हिन्दू की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होगा कि जो आज तक जिस पशु को गौ माता कह कर पूजा करता था आज उसी गौ माता की हत्या करने की बात हो रही है?
क्या हम कभी समस्या की जड़ को समझने का प्रयास करेंगे?
यहाँ सबसे बड़ी समस्या ही यह है कि हम समस्या की जड़ को समझने का बिलकुल भी प्रयास नहीं करते हैं। ऐसा भी नहीं है कि कोई समस्या के मूल को नहीं जानता लेकिन उस स्तर तक जाने का साहस जुटा पाना आसान प्रतीत नहीं होता।
मैं आशावादी हूँ कि लोग आने वाले समय में इस समस्या की जड़ को समझेंगे और स्वीकार करेंगे कि गौमाता की रक्षा दूध पीने से कदापि नहीं हो सकती। दूध का उपयोग जितना ज्यादा बढ़ेगा उतना ही कष्ट गौमाता का बढ़ता ही जाएगा।
डेयरी और बूचड़ खाने के रिश्ते के बारे में ज्यादा जानकारी आप इस ब्लॉग की दूसरी पोस्ट पर भी पढ़ सकते हैं –
डेयरी और बूचड़खाने में क्या रिश्ता है?