आज दूध उत्पादन का अधिकांश भाग भैंसो द्वारा प्राप्त किया जाता है क्योंकि भैंस के दूध में वासा की मात्रा ज्यादा होती है और जिसके कारण उसके दाम भी ज्यादा मिलते हैं। भैंस दूध द्वारा बनाये जाने वाले उत्पाद- दही, घी, पनीर की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।
लेकिन इतना योगदान होने के बावजूद भी भैंसो की कोई बात नहीं करता, उनको बचाने वाला भी कोई संगठन अभी तक पैदा नहीं हुआ है। भैंसो को कोई संरक्षण न मिलने के बावजूद क्या आपने कभी गौर किया है कि क्यों भैंसे कभी भी सड़कों पर आवारा नहीं घूमती? क्यों कोई भी भैंसा सड़कों उत्पात नहीं मचाता? क्यों भैंसो के लिए कोई भैंस-शालाएं भी नहीं बनायीं जाती? क्या कारण है इसके पीछे?
भैंस जिसे वाटर बफ़ेलो भी कहा जाता है पानी में जाना उसको बहुत पसंद होता है। इसलिए शायद कहावत भी बनी है कि गयी भैंस पानी में मतलब अब काम नहीं होगा (क्योकि भैंस पानी में जाने के बाद कब निकलेगी पता नहीं)।
जब इंसान की नज़र इस पशु पर पड़ी होगी तो उसे लगा होगा कि इस भोले प्राणी को आसानी से गुलाम बना कर इसका दोहान किया जा सकता है। तब उसने इसे जंगलों से ला कर, जो कि जंगलों में शेर, चीते का शिकार हुआ करती थी, अपने घरों में बाँध लिया और उसका दोहान करने लगा।
अब गायों के साथ-साथ भैंसो के दूध का व्यापार भी बहुत फल-फूल गया है, इनसे भी निरंतर दूध प्राप्त करने के लिए जबरन इन्हे गर्भवती किया जाता है और इनके बच्चे निरंतर हर वर्ष पैदा कराये जाते हैं।
यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक कि इनका शरीर टूट न जाये और वह और बच्चे पैदा करने लायक न रहे। यहाँ दया और करुणा का कोई स्थान नहीं होता लेकिन अगर आप ऐसा सोचते हैं कि भैंसो को डेयरी फार्म में बहुत प्यार से रखा जाता है तो यह आपका भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं है।

हर प्राणी के नर और मादा बच्चे पैदा होने की सम्भावनाएँ बराबर होती है लेकिन डेयरी उद्योग को यह स्वीकार्य नहीं होता, उन्हें तो सिर्फ मादा की जरूरत होती है जो आगे चल कर पुन: दूध देने की मशीन बने।
नर बच्चा उनके लिए एक कचरे के सामन होता है जिसको माँ के दूध से पूर्णत: वंचित रखा जाता है और डेयरी वाला यही दुआ करता है कि नर बछड़ा जल्द से जल्द मर जाए क्योंकि जितने दिन वह ज़िंदा रहेगा डेयरी वाले को ज्यादा नुकसान होगा।
अब जब उसको पैदा होने के बाद माँ का दूध ही नहीं पिलाया जाता है तो उसका मरना तो निश्चित ही है। अपने इस कुकर्म पर पर्दा डालने के लिए यह तर्क गढ़ लिया गया है कि नर बछड़े ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहते यह प्रकृति का नियम है।

अब भैंस के साथ क्या होता है? क्योंकि मादा तो एक दूध दुहने की मशीन होती है इसलिए उसका दोहन निरंतर जारी रहता है। इन वाटर बफ़ेलो को कभी वाटर भी नसीब नहीं होता जिसमें यह डुबकी लगा सके विशेषकर शहरों की डेयरी वाली भैंसो को।
जब तक यह दूध देने लायक रहती है तब तक ठीक और जैसे ही इनकी दूध उत्पादन क्षमता फायदेमंद नहीं रहती इनसे छुटकारा पा लिया जाता है लेकिन इन्हें सड़कों पर नहीं छोड़ा जाता इन्हें तो सीधे कत्लखाने को बेच दिया जाता है क्योंकि यह किसी की माँ नहीं है, जैसा की गाय होती है। लेकिन फिर भी इसका दूध तो भरपूर पिया जाता है। इनको बचाने के लिए कोई भैंस-रक्षक दल भी अभी तक नहीं बने है और बनने की कोई संभावना भी नहीं है।
इस तरह अप्राकृतिक तरीके से दूध के लिए पैदा की गयी 100% भैंसो की मौत या कहें हत्या क़त्लखाने में की जाती है, जी हाँ शायद ही किसी भैंस को अपनी प्राकृतिक मौत नसीब होती होगी। यहाँ यह कहना गलत नहीं होगा कि भैंस को पालने की आड़ में सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है और यही आज के युग में सबसे बदनसीब सबसे ज्यादा सताया जाने वाला प्राणी है।
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