दूध अपने आप में बहुत ही पौष्टिक और सम्पूर्ण आहार है, शायद इसी बात का गलत मतलब निकाला गया है, इसीलिए इस तरह के प्रश्न भी पैदा होते हैं।
कोई भी चीज़ बहुत पौष्टिक है इसका मतलब यह नहीं कि वह हर उम्र, हर प्रजाति के लिए एक सामान पौष्टिक होगी। अब यहाँ पूछा गया है कि क्या गाय का दूध माँ के दूध से बेहतर है? दोनों ही दूध अपने आप में उपयुक्त है, लेकिन जब बच्चे को उसकी माँ का दूध न पिला कर किसी अन्य प्रजाति की माँ का दूध पिलाने की कोशिश की जाएगी तो निश्चित ही देर-सबेर उसके दुष्परिणाम सामने आएँगे।
सच तो यह है कि किसी और प्रजाति का दूध पीना प्रकृति के नियमों से छेड़छाड़ ही कहा जाएगा। अगर हर प्रजाति का दूध एक दूसरी प्रजाति के लिए एक सामान पौष्टिक होता तो फिर हमारी माँ और बछड़े की माँ के दूध में कोई अंतर नहीं होना चाहिए, लेकिन दोनों के दूध की संरचना में जमीन और आसमान का अंतर होता है।
गाय के दूध में कई ऐसे तत्व होते हैं जो इंसान के लिए कोई काम के नहीं होते और उल्टा हानि ही पहुँचाते है, यही कारण है कि जब आज जितनी मात्रा में दूध का उत्पादन और खपत हो रही है उतनी ही बीमारियां भी बढ़ रही हैं। अर्थात जो पशु-दूध हम अपनी कथित गाय माता का पी रहें हैं वह जाने अनजाने हमे बीमार बना रहा है।
अब यह तर्क भी दिया जा सकता है कि गाय भी हमारी माता है तो फिर उसका दूध पीने में क्या बुराई है? अरे भाई, माता तो हमने उसे बनाया ही इसीलिए है कि हम उसके दूध पर अपना अधिकार जाता सकें, जबकी उसके असली बच्चे(बछड़े) उसी दूध के लिए तरसते रहें।
अंत में यही कहना उचित होगा कि बच्चे को जन्म के 6 माह तक सिर्फ माँ का भरपूर दूध पिलाना चाहिए और 2 वर्षों तक माँ के दूध के साथ-साथ शुद्ध शाकाहारी/वीगन (ऐसा भोजन जो सिर्फ पेड-पौधों से प्राप्त होता है) भोजन आवश्यकतानुसार देना चाहिए। जब बच्चा माँ का दूध पीना बंद कर देता है तो इसका मतलब होता है कि अब उसे जीवन भर किसी भी नकली माँ (गाय) का दूध पीने की कोई जरूरत नहीं है। यही प्रकृति का भी नियम है।