डेयरी फार्म के दिवालिया होने की खबर हो सकता है अर्थ व्यवस्था की दृष्टि से सही नहीं मानी जाए लेकिन आखिर कब तक हम निरीह पशुओं की चीख पुकार को अर्थ व्यवस्था से तौलते रहेंगे?
डेयरी फार्म का दिवाला निकला
सबसे पहले जब यह बात सुनी/पढ़ी तब मन में सिर्फ एक ही प्रश्न आया कि एक अमेरिकी डेयरी का दिवाला निकला लेकिन भारत में कब डेरी उद्योग का दिवाला निकलेगा?
वैसे तो किसी के भी बारे में बुरी खबर पर ख़ुशी की प्रतिक्रिया देना सभ्यता की निशानी नहीं कही जायेगी लेकिन वह उद्योग जो दिन-रात बारह महीने पशुओं की प्रताड़ना में लिप्त रहता है उसके बारे में कोई भी इंसान जो पशु अधिकारों के प्रति चिंतित है ख़ुशी ही जाहिर करेगा।
क्यों निकला सबसे पुरानी डेयरी का दिवाला ?
दी गार्डियन में छपी एक खबर के अनुसार अमेरिका में जहाँ दुनिया का सबसे बड़ा organize डेयरी उद्योग है लोगों की खान-पान की आदतें बदलने के कारण यह उद्योग गिरावट के दौर से गुज़र रहा है।
हाल ही में बोर्डेन डेयरी ने दिवालियापन से बचने के लिए सरकार से गुहार लगायी है, कई महीनों में ऐसा करने वाली यह दूसरी प्रमुख अमेरिकी डेयरी है । बोर्डेन, स्कूलों और अन्य लोगों के लिए हर साल लगभग 500 million gallon दूध का उत्पादन करता है। यह 3,300 लोगों को रोजगार देता है और पूरे अमेरिका में 12 प्लांट चलाता है।
एक अनुमान के मुताबिक अमेरिकन लोगों का झुकाव डेयरी उत्पादों से ज्यादा फलों का जूस और plant based milk की तरफ बढ़ा है। यही मुख्य कारण है कि 1857 में स्थापित बोर्डेन डेयरी की बिक्री और मुनाफे में साल-दर-साल गिरावट आती रही है।
आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 1975 से अब तक दूध की खपत 40% तक कम हुई है। 1996 में जहाँ एक औसत अमेरिकी 24 गैलन सालाना तक दूध का उपभोग कर लेता था वहीं अब यह खपत गिर कर 2018 में 17 गैलन तक आ गयी है।

दूध की मांग में गिरावट के कारण बहुत सी छोटी डेयरियों को अपना कारोबार समेटना पड़ा है। बोर्डेन का कहना है कि पिछले 18 महीनों में ही 2,730 डेयरी फार्म बंद हो चुके हैं। बहुत से फार्म्स को अपना कारोबार जारी रखने के लिए अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने पड़े हैं लेकिन बड़ी-बड़ी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के कारण बोर्डेन ऐसा करने में असमर्थ रहा।
बोर्डेन डेयरी ने घाटे से बचने के लिए विभिन्न नए उत्पाद भी बाजार में उतारे, लेकिन उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली।
भारत में कब बंद होंगे डेयरी उद्योग?
अभी भारत में डेयरी उद्योग इतना संगठित नहीं है और ज्यादातर दूध घर में पाली गयी अथवा छोटी डेयरी से कोओपरेटिव डेयरी को बेचा जाता है। दूसरी बात अभी भारत में दूध की माँग इतनी ज्यादा है कि नकली दूध का कारोबार बहुत फल-फूल रहा है।
भारत में लोगों को डेयरी की क्रूरता इतना परेशान नहीं करती या कहें कि बिलकुल नहीं करती लेकिन नकली दूध और दूध उत्पादों का डर हमेशा सताता रहता है।
हो सकता है नकली दूध उत्पादों के डर के कारण ही भारत में दूध की मांग में कमी हो और इसका सीधा असर दूध उद्योग पर पड़े, जिसके कारण लोग डेयरी कारोबार से विमुख होने लगे।
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