डेयरी उद्योग का सच सबको हज़म नहीं होता और यह सच बहुतों को आहात करता है। लेकिन ऐसा क्यों होता है? क्या इस सच को लोग सच नहीं मानते? क्यों लोग इसको सुन कर अपमानित महसूस करते हैं?
डेयरी उद्योग का सच जानकार आहात होते लोग!
कहते हैं सच अकसर कड़वा होता है, यह बात डेयरी उद्योग से सम्बंधित सच पर बिलकुल लागू होती है।
कोई भी व्यक्ति जब डेयरी का सच जानकार दूध और उसके उत्पाद का सेवन पूर्णत: बंद कर देता है तो जो कुछ उसने डेयरी की कड़वी सच्चाई के बारे में जाना है उसे दूसरों के साथ साझा भी करना चाहता है। लेकिन लोग इसे सकारात्मक नज़रिये से नहीं देखते हैं और अपने आप को अपमानित महसूस करते हुए सच बताने वाले से दूरी बनाना पसंद करते हैं।
सोशल मीडिया पर अकसर होता है कि बार-बार डेयरी की क्रूरताओं से सम्बंधित पोस्ट करने पर बहुत से लोग unfriend करना ज्यादा उचित समझते हैं बजाय इसके कि सच्चाई का सामना कर गहराई तक समझने की कोशिश करें।
पशु अधिकार कार्यकर्ता या वीगन एक्टिविस्ट को लोग अतिवादी कहते हुए यह आरोप भी लगाते हैं कि वह जोर जबरदस्ती से पूरी दुनिया पर अपनी विचारधारा थोपना चाहते हैं।
लेकिन ऐसा आरोप लगाने वालों को उन पशुओं की चीत्कार सुनाई नहीं देती जो पशु किसी भी डेयरी में इंसानों की दूध की लालसा पूरी करने के लिए रोज प्रताड़ित होते हैं और उनके जीवन का अंत या तो किसी कत्लखाने में अथवा एक आवारा पशु के रूप में सड़कों पर होता है।
भारत में क्यों आहत होते हैं लोग?
भारत में दूध को धर्म और संस्कृति से जोड़ दिया गया है। इसलिए जब भी दूध और डेयरी उद्योग को आईना दिखाया जाता है तो लोग धर्म और संस्कृति का हवाला देते हुए यह कह कर इसका विरोध करते हैं कि यह उनके धर्म और संस्कृति को अपमानित करने वाला है।
जब भारत के सबसे बड़े डेयरी विरोधी होर्डिंग को लोगो ने आहत हो कर गिरा दिया
वर्ष 2018 अगस्त में उदयपुर शहर में जैन धर्मावलम्बियों के प्रमुख संत के प्रवास के दौरान कुछ वीगन कार्यकर्ताओं ने जैन धर्म के अनुयाइयों से समक्ष दूध में निहित हिंसा के प्रति जागरूकता लाने के लिए एक बड़ा सा होर्डिंग लगाया।
इसमें दूध का प्रयोग करने वालों से सिर्फ एक सवाल किया गया था कि :क्या आप दूध-पीते बच्चे हैं?” लेकिन यह सवाल धर्मावलम्बियों को कांटे के भाँति चुभ गया और वह इसे हटाने के लिए किसी भी हद तक जाने को आतुर थे। अंतत: उन्होंने कुछ ही दिनों के भीतर इसे गिरा दिया। इस आंदोलन और होर्डिंग के बारे में विस्तृत जानकारी आप यहाँ पढ़ सकते हैं – First Large Anti-Dairy Hindi Hoarding in India
जब अमेरिका में PeTA के विज्ञापन से आहात लोगों ने किया विरोध
यह संयोग ही है किअगस्त 2018 में ही दूध उद्योग में गायों को कृत्रिम रूप से गर्भवती बनाने के तरीके के भयावह सच को दर्शाने वाले एक प्रो-वेगन वीडियो को अमेरिका के विस्कॉन्सिन राज्य में दुकानों से प्रतिबंधित कर दिया गया था क्योंकि ग्राहकों ने इसे ‘आपत्तिजनक’ और ‘ग्राफिक’ बता कर इसका विरोध किया था।
क्या था इस वीडियो में ?
PeTA की लघु फिल्म द प्रेग्नेंसी गन विस्कॉन्सिन के विभिन्न स्टोरों में दिखायी जा रही थी। कुछ ही दिनों में ग्राहकों की शिकायतें आने लगी कि यह आपत्तिजनक है और वीडियो आहात करने वाला है।
इस वीडियो को दिखाने के पीछे एक उद्देश्य यह था कि विस्कॉन्सिन राज्य के मैडिसन में अगले महीने से विश्व डेयरी एक्सपो आयोजित किया जा रहा था, संस्था ने डेयरी उद्योग की क्रूरता के पीछे की वास्तविकता का खुलासा करने के लिए इसे दिखाना शुरू किया था। विस्कॉन्सिन को अमेरिका का सबसे ज्यादा डेयरी उत्पादन वाला राज्य माना जाता है।
इस फिल्म को मूल रूप से Noor Meat & Grocery Store, Mother’s Food & Liquor, and Max’s Family Supermarket in Milwaukee as well as in Enrique’s Market in Madison में दिखाया जाना था लेकिन ग्राहकों के विरोध के चलते इसे हटाना पड़ा।
पीटा के कार्यकारी उपाध्यक्ष ट्रेसी रीमन के अनुसार, “प्रेगनेंसी गन के माध्यम से दर्शकों को यह याद दिलाने की एक कोशिश थी कि दूध और पनीर गायों पर योन उत्पीड़न से आते हैं।”
अगर इस वीडियो को देख कर किसी के मन में डेयरी उत्पादों के प्रति विकर्षण होता है तो दूध के वीगन विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना भी पीटा के उदेश्यों में से एक था।
लेकिन जब विरोध के चलते यह फिल्म नहीं दिखाई जा सकी तब पीटा ने एक अन्य विज्ञापन दिखाना शुरू किया जिसमें गाय और बछड़े को साथ में दिखा कर नीचे स्लोगन लिखा गया “Not Your Mom? Not Your Milk!”
यहाँ कुछ विचारणीय प्रश्न यह है कि
- क्या सच्चाई से मुँह मोड़ने से सच को झुठलाया जा सकता है?
- क्या सच्चाई को इसलिए नहीं दिखाया जा सकता कि वह लोगों को आहात करती है?
- क्या सच्चाई को हमेशा के लिए किसी झूठ से ढका जा सकता है?
गाय का कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) कैसे होता है?
Anti-dairy advert banned from stores for being too ‘offensive’