दूध का प्रयोग: एक दुधारी तलवार

दूध का प्रयोग हमारे स्वस्थ्य को किस हद तक प्रभावित कर रहा है इसका अनुमान शायद आज हम नहीं लगा पा रहे हैं। जितनी आज दूध और दूध उत्पादों की मांग है और दिन प्रतिदिन मांग तेजी से बढ़ रही है उस गति से दूध का उत्पादन नहीं हो रहा है, लेकिन दूध और उसके उत्पाद बाज़ार में भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं।

दूध उत्पादन जितना अधिक बढ़ाया जाता है मांग उससे कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। यही उत्पादन और मांग के बीच का भारी अंतर नकली दूध उत्पादों से भरा जा रहा है।

दूध का प्रयोग, असली दूध या नकली, कितना उचित?

वैसे तो कोई भी खाद्य पदार्थ जब नकली होता है तो स्वास्थय के लिए बहुत हानिकारक होता है लेकिन दूध के मामले में कुछ अलग है। असली दूध की असलियत का तो इस पूरे ब्लॉग में हर पोस्ट में विस्तार से वर्णन किया गया है लेकिन असली दूध की भारी मांग के कारण बाज़ार में नकली दूध और दूध उत्पादों की भी भारी खपत हो रही है।

कैसे बनता है नकली दूध?

दूध में अकसर रसायन युक्त दूध नकली की मिलावट की ख़बरें आती रहती है। यह नकली दूध स्वास्थय के लिए कितना खतरनाक होता है इसका अंदाजा इसमें डाले जाने वाले रसायनों से हो जाता है। नकली दूध बनाने के लिए सस्ते खाद्य तेल, कास्टिक सोडा, डिटर्जेंट, यूरिया, मेलेमाईन आदि का प्रयोग किया जाता है। इस तरह से बने रासायनिक दूध को असली दूध में मिला कर धड़ल्ले से बाजार में बेचा जा रहा है जिससे दूध की बेहताशा बढ़ती मांग की भी पूर्ति हो रही है।

अन्य नकली दूध उत्पाद

सिर्फ दूध ही नहीं दूध से बनने वाले अन्य कई उत्पादों की भी भारी मांग के कारण यह भी बाजार पर कब्ज़ा जमाये हुए हैं। नकली मावा, घी, मक्खन, पनीर आदि दूध उत्पाद अकसर बाज़ारों में जब्त किये जाते हैं लेकिन वह उनका एक छोटा सा ही भाग होता है जो बाज़ार में खपा दिए जाते हैं।

पनीर का ही उदहारण लें तो सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में लगभग 5 लाख टन पनीर की मांग है और दूध का कुल उत्पादन लगभग 15 करोड़ टन होता है। यदि सारे उत्पादित दूध से पनीर बनाया जाए तब भी 7 लाख टन पनीर का उत्पादन होगा लेकिन ऐसा होता नहीं है। कुल दूध उत्पादन के कुछ ही प्रतिशत का पनीर बनाया जाता है इसलिए यह बिलकुल स्पष्ट है कि दूध उत्पादों की मांग और उत्पादन का जो अंतर है वह नकली दूध उत्पादों से भरा जा रहा है।

नकली पनीर बनाने के लिए मैदा, पाम आयल, बेकिंग पाउडर, स्किम्ड मिल्क पाउडर, डिटर्जेंट, सोडा बाइकार्बोनेट, सल्फ्युरिक एसिड आदि घातक रसायनों का प्रयोग किया जाता है।

यही बात घी, मावा और अन्य उत्पादों पर भी लागू होती है। घी में जानवरों की चर्बी और एसेंस मिला कर बेचना भी बहुत आम हो गया है।

नकली दूध उत्पादों के स्वास्थय पर दुष्प्रभाव

लम्बे समय तक सिंथेटिक दूध का प्रयोग करने से कैंसर कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। नकली दूध में उपस्थित यूरिया और कास्टिक दिल की बीमारियों से पीड़ित लोगों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं।

बच्चों पर नकली दूध के हानिकारक प्रभावों का खतरा सबसे ज्यादा होता है क्योंकि इससे उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम उम्र में धीरे-धीरे कम होती जाती है। इसके अलावा, सोडियम भी इस जहर के माध्यम से शरीर में जाता रहता है।

क्या होते हैं वीगन दूध? What Are Plant-Based Milk?

क्या है समाधान नकली दूध उत्पादों से बचने का?

वैसे तो समाधान यही होता है कि इतना दूध पैदा किया जाए कि दूध उत्पादों की मांग पूरी हो जाए लेकिन समस्या यह है कि जितना उत्पादन बढ़ता है उससे कही ज्यादा मांग बढ़ जाती है। दूध उत्पादन के लिए बहुत अधिक मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है जो कि सिमित है और अनवरत बढ़ती दूध की मांग को पूरा करने में समर्थ नहीं है।

दूध उत्पादन के लिए दुधारू पशुओं की संख्या को भी निरंतर बढ़ाते रहना पड़ता है और यह बढ़ती पशुओं की संख्या पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।

एक समाधान यह हो सकता है कि नकली उत्पाद बनाने और बेचने वालों पर सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए लेकिन यहाँ समस्या यह है कि हमने दूध और दूध उत्पादों को इतना महिमा मंडित कर दिया है कि इसकी मांग इतिहास में अपने चरम पर पर है और दूर-दूर तक मांग में कमी होने की कोई सम्भावना नज़र नहीं आती।

जब तक मांग और आपूर्ति में यह अंतर बना रहेगा नकली दूध उत्पादों को रोकना असंभव है।

तो फिर क्या है समाधान? अगर दूध के प्रति भावनाएं अगर इतनी गहरी है और दूध उत्पादों की लत नहीं छूटती है तो फिलहाल कोई ऐसा समाधान नज़र नहीं आता जिससे नकली दूध और दूध उत्पादों पर रोक लगायी जा सके। इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही समाधान है जो इस ब्लॉग का सन्देश भी है

दूध छोड़, दया जोड़

यह तो सर्व विदित है कि नकली खाद्य पदार्थ सेहत के लिए घातक होते हैं और उनको बनाने और बेचने वाले समाज के प्रति गुनाहगार है लेकिन असली दूध का सेवन करने वाले और इसकी मांग पैदा करने वाले भी मासूम जानवरों और हामरे पर्यावरण के प्रति उतने ही गुनाहगार हैं।

इस तरह असली दूध का सेवन करने वाले और उसकी मांग में वृद्धि करने वाले ही नकली दूध के कारोबार को जन्म देने के लिए जिम्मेदार हैं।

दूध चाहे असली हो या नकली दोनों ही परिस्थिति में समाज, पशुओं,पर्यावरण और सेहत के लिए हानिकारक है या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दूध एक दुधारी तलवार की तरह है।

दूध क्यों हानिकारक है अंग्रेजी में यहाँ पढ़ें

Leave a Comment

error

Enjoy this blog? Please spread the word :)