देशी घी का प्रयोग जितना भारत में किया जाता है शायद विश्व में और कहीं नहीं किया जाता होगा। घी न केवल भारत में खाने में प्रयोग किया जाता है अपितु इसे पवित्र मान कर धार्मिक अनुष्ठानो और दवा के रूप में आयुर्वेदिक उपचार में भी प्रयोग किया जाता है।
दूसरी तरफ जैतून के तेल को विश्व में सबसे स्वास्थ्यवर्धक तेल माना जाता है, जिसका प्रयोग खाने में और विभिन्न रोगों के उपचार में भी किया जाता है।
देशी घी की प्रतिस्पर्धा अब जैतून के तेल से, कैसे?
हाल ही में एक समाचार पत्र में यह पढ़ा कि भारत सरकार अब विश्व में गाय से प्राप्त घी को जैतून के तेल के मुकाबले खड़ा करना चाहती है। जैसा कि जैतून के तेल को दुनिया में सबसे स्वस्थ्यवर्धक खाने का तेल माना गया है, भारत उसके मुकाबले में देशी घी की ब्रांडिंग करना चाहता है।

जैतून का तेल और घी में अंतर
सबसे पहला और मुख्य अंतर यह है कि जैतून का तेल एक वनस्पतिजन्य खाद्य उत्पाद है जबकि घी पशुओं के दूध से प्राप्त एक वसा है जिसे इंसान खाद्य पदार्थ मान कर सेवन करता आ रहा है।
जैतून का तेल (Olive Oil)
जैतून का तेल, जैतून से प्राप्त एक तरल वसा है। जैतून भूमध्यसागरीय बेसिन की एक पारंपरिक वृक्ष फसल है। जैतून को दबाकर तेल का उत्पादन किया जाता है। इस तेल का उपयोग आमतौर पर खाना पकाने में या सलाद ड्रेसिंग के रूप में उपयोग किया जाता है।
इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों में लाभदायक होता है साथ ही यह त्वचा संबंधी समस्याओं और सौंदर्य बढ़ाने के लिए भी खूब प्रयोग किया जाता है। इसमें फैटी एसिड की पर्याप्त मात्रा होती है जो हृदय रोग के खतरों को कम करने में सहायक होती है । मधुमेह रोगियों के लिए भी इसे काफी लाभदायक माना जाता है । शरीर में शुगर की मात्रा को संतुलित बनाए रखने में इसकी खास भूमिका है।
इसके विभिन्न स्वास्थ्यवर्धक गुणों और लगभग कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होने के कारण इसे दुनिया का सबसे ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक खाने का तेल माना जाता है।
इन सब गुणों के साथ यह एक प्राकृतिक वनस्पति जन्य उत्पाद है जिसे प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की पशु क्रूरता शामिल नहीं होती।
देशी घी अर्थात पशु चर्बी
घी पशुओं के दूध से निकली गयी वासा है। घी बनाने के लिए पशुओं से दूध प्राप्त करना अति आवश्यक है जिसके लिए पशुओं पर विभिन्न प्रकार अत्याचार होते हैं व उनका आजीवन शोषण भी किया जाता है। दूध में किस प्रकार की हिंसा होती है इस बारे में विस्तार से जानने के लिए आप इस ब्लॉग के विभिन्न लेख पढ़ सकते हैं।
घी में न केवल हिंसा व अत्याचार समाहित होता है बल्कि यह इंसानों में कई बिमारियों का कारण भी है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग आदि कई गंभीर बिमारियों के पीछे घी की भूमिका कई शोध में सिद्ध हो चुकी है।
इसके विपरीत भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति में देशी गाय के घी के सेवन करने की सलाह दी जाती है। हमे यहाँ यह समझना होगा कि आयुर्वेद एक चिकित्सा शास्त्र है और उसका उद्देश्य रोगों का इलाज करना है। इलाज के लिए उपयोग किये जाने वाला पदार्थ कहाँ से और कैसे प्राप्त किया जाता है इसका आयुर्वेद में ज्यादा महत्त्व नहीं है। आयुर्वेद में तो कई रोगों के उपचार में विभिन्न पशुओं के मांस सेवन का भी उल्लेख है, इससे स्पष्ट है कि यहाँ नैतिक पहलू गौण है।
यहाँ हमे भी यह सोचने-विचरने की आवश्यकता है कि अगर कोई दवा या खाद्य पदार्थ भले ही हमारे स्वास्थ्य के लिए एक हद तक हितकारी हो लेकिन यदि उसे प्राप्त करने में मूक पशुओं की चीत्कार और पीड़ा समाहित हो तो क्या उसका प्रयोग जायज़ है? ऐसा भी नहीं है कि घी के प्रयोग के बिना स्वस्थ्य जीवन जीना और विभिन्न व्यंजनों का स्वाद लेना संभव नहीं है।
आज जब यह सिद्ध हो चुका है कि वनस्पति आधारित भोजन ही हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हितकारी है तो किसी ऐसे पशु पदार्थ का प्रयोग करना कैसी समझदारी कही जाएगी जिसके उत्पादन और सेवन से हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य हो हानि हो रही है।
दूध और पर्यावरण : दूध उत्पादन कैसे हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है?
क्या नकारात्मक पहलू है घी की ब्रांडिंग के ?
आज भारत दूध उत्पादन में विश्व में अग्रणी है। इसकी मुख्य वजह है भारत में शाकाहारियों की सर्वाधिक संख्या का होना और यह मिथ्या धारणा का होना कि शाकाहारियों के लिए पशुओं से प्राप्त दूध ही कैल्शियम और प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत है।
दूसरी और भारत में प्रति व्यक्ति मांस की खपत अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है और गौमांस की खपत तो और भी कम है लेकिन यह दूध उद्योग का ही नकारात्मक प्रभाव है कि भारत में गौमांस का उत्पादन होता है और देश में खपत नहीं होने के कारण विदेशों में निर्यात किया जाता है। आज भारत गौमांस निर्यात में भी विश्व में दूसरे स्थान पर है।
विश्व के प्रमुख गौमांस निर्यातक देश
अगर घी और अन्य उत्पादों की विश्व स्तर पर ब्रांडिंग कर प्रचार-प्रसार किया जायेगा तो इसके उत्पादन में भारी उछाल आ सकता है। अभी जब भारत में दूध उत्पादों की भारी मांग और उत्पादन के कारण सड़कों पर आवारा -पशुओं की समस्या और मांस उत्पादन अपने चरम पर है तो दूध उत्पादों की मांग और बढ़ने के बाद यह समस्या कितनी विकराल रूप धारण कर सकती है इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
एक और विश्व में भारत की छवि एक अहिंसक देश की है वहीं दूसरी और मांस निर्यात में निरंतर वृद्धि होने से भारत की छवि को नुकसान हो रहा है। आने वाले समय में महावीर, बुद्ध और गांधी के अहिंसक देश की छवि और भी धूमिल होने की सम्भावना है।