यह एक ऐसा प्रश्न है जो कि हर किसी के मन में बार-बार में उठता है जब भी हम आवारा गायें सड़कों पर देखते हैं।
आप क्या सोचते हैं, आवारा गायों को कहाँ होना चाहिए?
जंगल में? गौशाला में? डेयरी फार्म में? या लोगो के घर में जो इसको माता का दर्जा देते हैं?
क्या आपने कभी सोचा है इतनी सारी आवारा गायें सड़कों पर कहाँ से आ रही है?
कड़वा सच तो यह है कि यह आवारा गायें डेयरी उद्योग द्वारा फेंका गया वह कचरा है जो डायरी फार्म में रोज़ पैदा होता है। हम भले ही गाय को कितना ही माता-माता कह लें लेकिन सड़कों पर आवारा घूमने वाली सारी गायें, बैल या बछड़े डेयरी उद्योग के लिए अनचाहा वेस्ट है जिन्हे अगर वह सड़कों पर नहीं छोड़ेंगे तो उनका दूध का धंधा बिलकुल भी फायदेमंद नहीं हो सकता।
जब इन्हे सड़कों पर छोड़ दिया जाता है तो इनकी मजबूरी है सड़को पर रहना क्योंकि वहीँ उनको कूड़ा-कचरा खाने को मिलता है जो इनका भोजन है जिसके कारण वह जीवित है।
अबकी बार आप जब कभी भी सड़कों पर गायों का झुण्ड देखें तो ध्यान से देखिएगा, इसमें आपको बैल और नन्हे-नन्हे नर बछड़े ज्यादा दिखाई देंगे, क्योकि यह डेयरी उद्योग के लिए बिलकुल अनुपयोगी होते हैं।
अब आपके मन में यह सवाल भी आ रहा होगा कि इन्हे जंगल में भी तो छोड़ा जा सकता है। लेकिन यह असंभव हैं क्योकि इतने जंगल ही नहीं बचे हैं जहाँ इन्हे भरपूर चारा मिल सके।
यदि डेयरी में अप्राकृतिक रूप से पैदा हुई इन गाये/बैलों को जंगलों में छोड़ भी दिया जाये तो यह वहां एडजस्ट नहीं हो सकेंगी और अन्य जंगली प्राणी खतरे में आ जायेंगे। दूसरी बात आज डेयरी उद्योग में रोज़ हज़ारों की संख्या में बछड़े पैदा हो रहे हैं जिसमें से आधे नर बछड़े होते हैं और इतनी संख्या में पैदा होने वाले इन जानवरों के लिए रहे सहे जंगल बहुत ही कम पड़ेंगे जैसे ऊंट के मुँह में जीरा !
अब बात करें गौशालाओं की, उनकी हालत तो पहले से ही ख़राब है जहाँ रहने वाली गायें भूख से तड़फ-तड़फ कर दम तोड़ रही है। और कितनी ही गौशालाएं बना लो कम ही पड़ने वाली है। गौशालाओं में इतनी मात्रा में चारा-पानी उपलब्ध कारवाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। आप कहेंगे दान से चारा खरीद कर खिलाया जा सकता है लेकिन उसके लिए इतना चारा पैदा भी तो होना चाहिए न?
क्या गौशालाएं ही आवारा गायों की समस्या के लिए उपयुक्त समाधान है?

यहाँ एक प्रश्न और दिमाग में आता है कि दूध तो पूरी दुनिया में हर देश में पैदा होता है तो यह समस्या हमारे देश में ही क्यों है? इसका बहुत सीधा जवाब है कि अन्य किसी भी देश में गाय को माता का दर्जा नहीं दिया गया। जैसे हम अपने देश में भैंसो को बेकार होने पर कत्लखाने को बेच देते हैं वैसे ही अन्य देशों में गायों को भी बेकार होने पर मांस उद्योग खरीद लेता है।
आज देश में हर शहर में आवारा गायों का आतंक है जिसका इलाज किसी को नज़र नहीं आ रहा। कभी-कभी ज्यादा परेशान होने पर लोग अपने स्तर पर ही इसका असफल हल ढूंढने की कोशिश करते हैं, लेकिन फिर भी अक्सर यह गायें समय-समय पर बेकाबू हो कर दशहत फैला ही देती है।
जैसा की इन आवारा गायों में अधिकांश संख्या नर की होती है इसलिए अब इस समस्या से निजात पाने के लिए एक और अप्राकृतिक तरीका ढूंढा जा रहा है।
क्योंकि दूध पैदा करने के लिए बछड़ा पैदा होना जरुरी है और इसमें प्राकृतिक नियमों के अनुसार नर और मादा का प्रतिशत लगभग बराबर ही होता है लेकिन अब sex-sorted semen (SSS) तकनीक द्वारा कृत्रिम गर्भाधान (artificial insemination) करवा कर सिर्फ मादा बछिया ही पैदा करवाई जायेगी।
इस विषय में ज्यादा जानकारी यहाँ पढ़ सकते हैं – India testing a new way to deal with stray cattle: Eliminate male bovine before conception
कुल मिला कर जो गायें हम अपने स्वार्थ के लिए पैदा कर रहे हैं वह हमारे बीच ही रहने को मजबूर है। और सड़कों पर आवारा भटकना उनकी मजबूरी है।
आपके विचार बहुत अच्छे लगे। आज गोखेत की जमीन पर कब्जा कर रखा है कुछ स्वार्थी लोगो ने, हम सब मिलकर प्रयास करे तो उसपर इकोविलेज बन सकता है।