डेयरी और बूचड़खाने में क्या और कितना गहरा रिश्ता है इसको गहराई से समझने से पहले हमें अपनी आँख और कान खोल कर, देख और सुन कर यह बात स्वीकार करनी होगी कि कुछ तो रिश्ता जरूर है। हम रोज़ समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि हमारे देश में दूध उत्पादन पर बहुत जोर दिया जा रहा है और वहीँ दूसरी और हमारा देश बीफ निर्यात में भी अग्रणी बना हुआ है, साथ ही साथ दिन पर दिन मांस निर्यात भी बढ़ता जा रहा है।
हमारे देश में पशु-दूध को अहिंसक मान कर इसका सेवन करने वाले शाकाहारी लोग यह स्वीकार करने को बिलकुल भी तैयार नहीं हैं कि उसका दूध पीना अप्रत्यक्ष रूप से कत्लखाने के लिए कच्चा माल (डेयरी में अनुपयोगी हुए पशु ) उपलब्ध करवाता है। अगर यह बात समझ भी लेते हैं तो सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर पाते क्योकि ऐसा करने से उनका डेयरी उत्पादों का सेवन करना मुश्किल हो जाएगा।
दूध के स्वाद और उसके बारे में फैलाई गयी मिथ्या-धारणाओं में जकड़े होने के कारण वह अपने जीवन से पशु-दूध को बाहर निकालने का साहस नहीं जुटा पाते हैं।
डेयरी और बूचड़खाने का रिश्ता
कोई भी पशु कभी भी इंसानों के लिए दूध नहीं देता है। वह तो उसके अपने नवजात बच्चे के लिए दूध पैदा करता है, बिलकुल वैसा ही जैसा कि इंसानों में होता है। आज डेयरी एक धंधा बन गया है जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक दूध का उत्पादन कर उसे बेच कर अधिक से अधिक मुनाफा कामना है।
यह बहुत बड़ा भ्रम है कि हम गाय को माता मानते हैं इसलिए उसको पालते और उसका दूध पीते हैं। हमें एक बात स्पष्ट रूप से समझनी चाहिए कि हम जो भी दूध का सेवन करते हैं वह सिर्फ गाय को माता मान लेने से नहीं मिलता और न ही कोई गाय हमें अनंत काल तक दूध दे सकती है।
किसी भी पशु से उसका दूध लेने के लिए उसे गर्भवती बनाना पड़ता है और उसके बछड़ा पैदा होता है। बछड़ा होने पर ही वह उसकी माँ बनती है लेकिन चूँकि हम बहुत ही चालाक हैं और हमने गाय प्रजाति को पहले से ही माता घोषित किया हुआ है इसलिए उसके शरीर में पैदा हुए दूध पर पहला हक अपना समझते हैं और यहीं से शुरू होता है डेयरी और बूचड़खाने का गहरा रिश्ता।
अब जब दूध हमे पीना है तो पैदा हुए बछड़े को रास्ते से तो हटाना ही पड़ता है, इसके दो ही रास्ते होते हैं या तो उसको जन्म के कुछ ही दिनों बाद सड़कों पर छोड़ दें या फिर जहाँ गाय के कत्ल पर पाबंदी नहीं है वहां कत्लखानों को बेच दें। इसको भैंस के सन्दर्भ में आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं क्योकिं उससे हमारा माता का कोई रिश्ता नहीं है इसलिए भैंस के शत प्रतिशत नर बछड़े इंसानों द्वारा कत्ल किये जाते हैं या तो डेयरी में या बूचड़खाने में (इसे आप अपने निकटतम डेयरी फार्म से कन्फर्म कर सकते हैं।)
जहाँ गाय के कत्ल पर पाबंदी नहीं है वहां गाय के नर बछड़ों के साथ भी यही होता है। मादा पर दया करना तो हमारी मजबूरी है क्योकि बड़ी होने पर हमे उसका दूध जो पीना है। जब डेयरी का पशु एक समय बाद दूध पैदा करने लायक नहीं रहता तो किसी भी डेयरी के लिए बोझ बन जाता है जिससे छुटकारा पाना जरुरी होता है।
क्या अब हिन्दू संगठनों को भी गौ हत्या से एतराज़ नहीं है?
इस तरह से अनुपयोगी हुए पशुओं से छुटकारा पाने के हमारे देश में 2 तरीके होते हैं (दूसरे देशों में सिर्फ एक तरीका होता है -बछड़े की हत्या ) या तो उनको सड़कों पर आवारा छोड़ दिया जाता है जो कि गायों के मामले में होता है या फिर कत्लखानों को बेच दिया जाता है। अनुपयोगी भैंसो का अंत हमेशा कत्लखाने में ही होता है, इसका प्रमाण यह है कि भैंस आपको कभी आवारा घूमती नज़र नहीं आएगी। इतना पढ़ने के बाद तो यह स्पष्ट हो गया होगा कि डेयरी और कत्लखाने कैसे एक दूसरे के पूरक हैं।
रिश्ते को थोड़ा और गहराई से जानने के लिए अब दो स्तिथियाँ समझते हैं।
पहली परिकल्पना – अब सोचिये सिर्फ डेयरी उद्योग ही हो और कत्लखाने बंद कर दिए जाएँ तो क्या होगा? कहाँ और कैसे इतने आवारा पशु रहेंगे और इंसानो के जीवन पर इसका क्या दुष्प्रभाव होगा?
दूसरी परिकल्पना – अगर डेयरी उद्योग न हों लेकिन कत्लखाने चालू रहें तो उनके लिए कच्चा माल (पशु) कहाँ से मिलेंगे?(क्योंकि सिर्फ मांस के लिए पशुओं की खेती करना बहुत ज्यादा महंगा होता है)
इन दोनों काल्पनिक परिस्तिथियों का जवाब आप स्वयं सोचिये और निर्णय कीजिये कि डेयरी और बूचड़खानों में क्या रिश्ता है?
बहुत अच्छी व सच्ची जानकारी दी गई है। इसके लिए लेखक को साधुवाद है। इस कपटी व्यापार को बंद करने का दुनिया पर क्या व्यापक असर पड़ेगा और वह पशु प्रजातियों और मानव जाति के लिए कितना सुखद या दुखद होगा इसपर भी प्रकाश अवश्य डालें।
धन्यवाद
यह कपटी व्यापार तभी बंद होगा जब हम दूध की मांग करना बंद कर देंगे। इसके अतिरिक्त और कोई रास्ता है ही नहीं।
मतलब साफ है न दूध मिलेगी न गाय भैस रहेगी ये भी अन्य प्राणियों की तरह विलुप्त हो जाएगें।। तब आने वाली पीढ़ी को बड़ी प्रजाति के रूप में गाय भैस को पिक्चर के माध्यम से लोगों को दिखाया और बताया जाएगा जैसे हमलोगो को डायनासोर के बारे में बताया जाता है।
यही सबसे बड़ी गलतफमी हैकि हमारे दूध पीने से गाय/भैंस बची हुई है। दरअसल यह हम अपने उन कुकर्मों के में बचाव में कहते हैं जो कि हम इन मासूम पशुओ पर कर रहे हैं। क्या आपको यह नहीं दीखता की दूध पीने से कितनी गाय/भैंसे/बछड़े रोज़ कत्लखानों में काटे जा रहे हैं और आपके दूध पीने से मांस खाने वालों की मोज़ हो रही है?
अगर किसी जानवर का दूध पीने से ही उसकी रक्षा होती है तो आपके अनुसार दूसरे विलुप्त होते दूसरे जानवरों पर भी यही फार्मूला अपनाया जाना चाहिए।