दूध की अनियंत्रित बढ़ती मांग के कारण डेयरी उद्योग भी ज्यादा से ज्यादा दूध पैदा करने के दबाव में है और इसी दबाव का नतीजा है कि डेयरी में पशुओं के अधिकारों को अनदेखा करते हुए उन्हें सिर्फ दूध पैदा करने की मशीन समझा जाने लगा है।
पशु स्वस्थ्य रहे और ज्यादा से ज्यादा दूध दे इसके लिए भारी मात्रा में एंटीबायोटिक का उपयोग पशुओं और पशु-दूध का सेवन करने वाले दोनों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।
डेयरी उद्योग और एंटीबायोटिक
हाल ही मैं देश के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र दी हिन्दू में प्रकाशित सर्वेक्षण के अनुसार देश के डेयरी उद्योग में धड़ल्ले से हो रहे एंटीबायोटिक का प्रयोग चिंता का विषय है।
ज्यादा दूध उत्पादन के दबाव में डेयरी उद्योग में डेयरी पशुओं का ज्यादा से ज्यादा दोहन किया जाता है जिससे अधिकाधिक मुनाफा कमाया जा सके। वैसे तो यह पशु-क्रूरता की श्रेणी में आता लेकिन जनता और सरकार सभी इस पर आँखे मूंदे रहते हैं। जनता दूध के लालच में और सरकारें रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए।
निरंतर दूध उत्पादन का डेयरी-पशुओं पर विपरीत प्रभाव होता है और उन्हें कई प्रकार की बीमारियां लग जाती है। ऐसी स्तिथि में भी डेयरी उद्योग को मुनाफा कमाने के लिए पशुओं से निरंतर दूध प्राप्त करना जरुरी होता है। यहाँ पर एंटीबायोटिक का बेहिसाब प्रयोग किया जाता है ताकि पशुओं के रोगग्रस्त होने का अहसास न हो। दुधारू पशुओं को एंटीबायोटिक देने पर उसका अंश दूध में भी आ जाता है जो दूध बच्चे से लेकर बूढ़े सभी पीते हैं।
यहाँ एक बात और चिंताजनक है कि ऐसे भी कई एंटीबायोटिक होते हैं जिसका प्रयोग इंसानों से लिए सुरक्षति नहीं माना गया है लेकिन वह पशुओं के लिए प्रयोग किये जाते हैं। ऐसे एंटीबायोटिक भी उस दूध में आ जाते हैं जिसे सब प्रयोग करते हैं।
इस तरह अनजाने में निरंतर दूध के जरिये एंटीबायोटिक शरीर में जाने से उस एंटीबायोटिक की बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोध क्षमता कम होने लगती है और जब इन्फेक्शन के दौरान एंटीबायोटिक खाया जाता है तो वह असर नहीं करता।
कौन है इसका जिम्मेदार?
सी एस ई (CSE) ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा है कि एंटीबायोटिक के दुरूपयोग के खिलाफ कड़ा कानून होने के बावजूद एक पंजीकृत पशुचिकित्सक के पर्चे के बिना एंटीबायोटिक धड़ल्ले से बेचा जाता है और पशु रखने वाले इसे भारी मात्रा में अपने पास संगृहीत रखते हैं और बिना किसी पशुचिकित्स्क की सलाह के अपने निर्णय के अनुसार इनका प्रयोग गाय, भैंसो पर करते हैं।
पहली नज़र में कोई भी इसकी जिम्मेदारी डेयरी मालिक पर ही डालेगा लेकिन गहराई से सोचने पर यह पता चलता है कि दूध की बेहिसाब मांग ही इसका एकमात्र कारण है। कोई भी व्यापार मांग और आपूर्ति पर आधारित होता है और मांग बहुत ज्यादा है तो व्यापारी/उद्योगपति किसी भी हाल में पूरा कर अधिकाधिक मुनाफा कामना चाहेगा चाहे उसके लिए कुछ अनैतिक भी क्यों न हो।
अगर प्रकृति के नियमानुसार देखा जाए तो दूध एक शिशुआहार है जो सिर्फ बच्चे के लिए आता है वो भी एक निश्चित समय के लिए न कि जिंदगी भर के लिए। लेकिन इंसान येन-केन-प्रकारेण आजीवन पशु-दूध सेवन की लालसा रखता है और यही अप्राकृतिक लालसा डेयरी में पशुओं पर होने वाले अत्याचारों का सीधा कारण है।
स्वास्थ्य समस्याएं जो डेयरी उत्पादों के कारण हो सकती है
For Vegetarians
Milk is the prominent source of PROTEIN
if we convert to vegan then?
कोई भी जानवर उम्र भर दूध नहीं पीता फिर भी उनमें कभी प्रोटीन की कमी नहीं होती। दूध में बेशक प्रोटीन होता है लेकिन उससे भी ज्यादा सुपाच्य प्रोटीन दालों, सूखे मेवे , हरी सब्जियों में , सोया आदि में पाया जाता है।
दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन पशुओं द्वारा प्राप्त प्रोटीन की श्रेणी में आता है न कि शाकाहारी प्रोटीन की श्रेणी में क्योकि शाकाहार का मतलब ही होता है शाक+आहार और दूध किसी पेड़ या पौधे पर नहीं उगता।