क्या गौशालाएं ही आवारा गायों की समस्या के लिए उपयुक्त समाधान है?

गौशाला, यह शब्द सुनते ही ऐसा लगता है जैसे कि यह कोई जगह है जो गायों के लिए स्वर्ग सामान होगी। गौशालाएं जहाँ बहुत सी गायें निस्वार्थ भाव से रखी जाती होंगी और उनकी सेवा की जाती होगी। अगर ऐसी तस्वीर बनती भी है तो इसमें कुछ गलत नहीं है क्योंकि गौशालाओं की परिकल्पना भी इसी उद्देश्य से की गयी थी।

क्या होती है गौशालाएं ?

गौशालाएं वह जगह होती है जहाँ वो गाये, बैल और बछड़े रखे जाते हैं जिनको उनके मालिक सड़कों पर छोड़ देते हैं क्योंकि वह उनके लिए आर्थिक बोझ बन जाते हैं और उन्हें रखना उनके धंधे के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

क्यों स्थापित की जाती है गौशालाएं?

गौशालाएं स्थापित करने की जरुरत क्यों पड़ी? इस विषय में एक तर्क जो बहुत मजबूती से प्रस्तुत किया जाता है वह है “जीवदया” के लिए। इस तर्क के हिसाब से तो अन्य पशुओं जैसे भैंसों के लिए क्यों भैंस शालाएं, बकरियों के लिए बकरी शालाएं या फिर कुत्तों के लिए कुत्ता शालाएं स्थापित क्यों नहीं की जाती?

माना कि हम इंसान गायों का दूध निकाल कर सेवन करते हैं लेकिन दूध तो भैंस और बकरी का भी पिया जाता है तो फिर सिर्फ गाय ही क्यों? क्यों अन्य दूध देने वाले पशुओं के साथ भेदभाव किया जाता है। यदि जीवदया ही कारण है तो फिर यह भेदभाव तो बिलकुल भी नहीं होना चाहिए।

मुझे तो गौशालाएं स्थापित करने का सिर्फ एक ही कारण समझ आता है कि, गाय प्रजाति को हमने माता घोषित कर दिया है और उसके कत्ल पर पाबंदी लगा दी है। लेकिन दूध का सेवन दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है जो इन गायों की संख्या में निरंतर वृद्धि कर रहा है।

अब इतनी संख्या में गौ मातायें अगर आवारा घूमती नज़र आती है तो एक स्वाभाविक सा प्रश्न उठता है कि जिस पशु को पूज्यनीय मान कर माता का दर्जा दिया गया है वही पशु आवारा सड़कों पर क्यों घूम रहा है? कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका सामना करना किसी पूरे समाज के लिए भी आसान नहीं होता और शायद ऐसा ही हमारे समाज के साथ भी हुआ होगा।

ऐसे ही कड़वे प्रश्नो के उत्तर के रूप में शायद गौशालाओं की स्थापना का प्रचलन हुआ होगा। लेकिन क्या निरंतर बढ़ती गायों की संख्या के लिए वर्तमान गौशालाएं पर्याप्त है? यदि नहीं तो कितनी और गौशालाएं और स्थापित की जानी चाहिए जिससे की हर गौमाता को एक उपयुक्त स्थान और भोजन मिले और उसे दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़े?

जैसा कि मैंने ऊपर भैंस और बकरी के विषय में प्रश्न उठाया था तो उस बारे में में कहना चाहता हूँ कि भैंस और बकरी इंसान के लिए दुधारू होने के बावजूद सड़कों पर आवारा नहीं घूमते और सभ्य समाज के लिए कोई प्रश्न पैदा नहीं करते क्योकि, इन दोनों पशुओं की हत्या कर उनका मांस बेचने पर कोई पाबंदी नहीं है।

आपने शायद कभी सोचा नहीं होगा लेकिन यह सत्य है कि शायद ही कोई भैंस या बकरी अपनी स्वाभाविक उम्र पूरी करती होगी। एक भैंस का जीवन काल 20 वर्षों से अधिक हो सकता है लेकिन इसके पहले ही इन्हे मांस के उत्पादन के लिए कत्लखाने में काट दिया जाता है।

मतलब पहले इनका भरपूर दूध निचोड़ा जाता है और जब यह पशु बेकार हो जाते हैं तो इनको कत्लखाने को बेच कर पैसा कमा लिया जाता है। यह बात हमारे देश के अधिकांश प्रदेशों में गायों पर लागू नहीं होती इसलिए हमें अपना मुँह छिपाने और कड़वे सवालों के उत्तर के रूप में गौशालाएं स्थापित करनी पड़ती है।

क्या अंतर होता है गौशालाओं और डेयरी में?

गौशाला और डेयरी में एक मूलभूत अंतर होता है कि डेयरी पैसा कमाने के लिए चलाई जाती है और इसका मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक दूध उत्पादन कर लाभ कामना होता है। डेयरी में सिर्फ वही गायें रखी जाती हैं जो मुनाफा कमा कर देती है। वहीं गौशालाएं लोगों द्वारा दिए गए दान से अपना खर्च चलाती है और वहाँ डेयरी द्वारा बेकार हुई हर तरह की गायें, बछड़े और सांड रखे जाते हैं, चाहे वह उपयोगी हो या न हो।

क्या गौशालाओं में गायों को नि:स्वार्थ भाव से रखा और उनकी सेवा की जाती है?

वैसे तो गौशालाओं की स्थापना के पीछे उद्देश्य ही यही होता है कि डेयरी द्वारा बेकार हुई गायों को शरण दी जाए ताकि  उनके जीवन का बाकी समय आराम से गुज़रे। लेकिन हमेशा वह नहीं होता जो होना चाहिए और यही बात गौशालाओं पर भी लागू होती है।

आज दूध की बढ़ती मांग के कारण गायों की संख्या में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। गायों की तेजी से बढ़ती संख्या के कारण वर्तमान की गौशालाओं में अपनी क्षमता से कहीं अधिक गायें रखी जाती है। इतनी अधिक संख्या होने के कारण किसी भी गौशाला की सारी व्यवस्थाएँ चरमरा जाती है और गायों के लिए खाना, पानी और जगह की कमी हो जाती है।

ऐसी परिस्तिथियों में गौशालाएं जो कि आवारा गायों की शरणस्थली के रूप में स्थापित की जाती है उन्ही गौशालाओं में गायें अपनी आकाल मौत मरने लगती है और गौशालाएं अपने उद्देश्य को पूरे करने में असफल साबित होती है।

बहुत सी गौशालाएं अपने खर्च चलने के लिए अपनी गौशाला में उपस्थित बहुत सी दूध देने योग्य गायों का दूध निकल कर और उनके उत्पाद बना कर भी बेचती है। गायों का दूध प्राप्त करने के लिए उनके बच्चों को उनसे दूर बाँधा जाता है, जैसा की किसी भी व्यावसायिक डेयरी में होता है। ऐसी परिस्तिथि में गौशाला और डेयरी में कोई अंतर् नहीं रह जाता। इसलिए नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना और रखना बेमानी सा लगता है।

कुछ गौशालाओं की स्तिथि ठीक-ठाक होने के पीछे यही कारण है कि उन्हें डेयरी की तरह चलाया जाता है इसलिए उनके रख रखाव पर ध्यान दिया जाता है। कुछ मशहूर गौशालाएँ ऐसा ही करती है।

यहाँ तक की अपनी गौशालाओं के ब्रांड से गाय के दूध, मूत्र और गोबर से बने उत्पादों का व्यापार भी करती है। इस तरह की गौशालाओं को का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि जो गाय अब तक डेयरी में प्रताड़ित होती थी वह अब यहाँ प्रताड़ित होने लगती है।

डेयरी उत्पादों की मांग के कारण तेजी से बढ़ती गायों की संख्या को संभालने के लिए फ़िलहाल कोई भी कोशिश ऊंट के मुहँ में जीरा ही साबित हो रही है और हमारी कथित गौमाता सड़कों पर और गौशालाओं में ऐसे ही बेमौत मरने को मजबूर है। इसका एक बहुत ही सरल उपाय है जो सभी को असंभव सा लगता है लेकिन है नहीं। वह है डेयरी उत्पादों का पूर्णत: निषेध।

कुल मिला कर गौशालाओं का सच यही है कि यह अपने उद्देश्य में आंशिक रूप से ही सफल होती है बाकी यह सिर्फ एक छलावा ही प्रतीत होता है।

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